नेत्रा अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास संबंधी निम्नलिखित प्रमुख गतिविधियों में संलिप्त है:
फ्लू गैस से कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) को अलग करने के लिए प्रेशर स्विंग एडसोर्प्सन प्रक्रिया का विकास
नेत्रा ने फ्लू गैस से कार्बन डाईऑक्सांइड (CO2) को अलग करने के लिए विभिन्न सहयोगी संस्थानों के साथ मिलकर संस्थागत अनुसंधान के माध्यम से एक प्रेशर स्विंग एडसोर्प्सन (पीएसए) प्रक्रिया का विकास किया है। पीएसए एक चक्रीय भौतिक गैस प्रथक्करण प्रक्रिया है जहां कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) को किसी अधिशोषक (adsorbent) में उच्चतर दाब पर अवशोषित किया जाता है और फिर कम दाब पर उसे डिसॉर्ब्ड (desorbed) किया जाता है। प्रक्रिया को एमाइन (amine) आधारित अवशोषण प्रक्रिया जो लागत और ऊर्जा प्रभावी है के एक विकल्प के रूप में विकसित किया जा रहा है।
CO2 के जैव ईंधन में रूपांतरण के माध्यम से CO2 का सदुपयोग
नेत्रा ने कार्वन डाईऑक्साइड को सहयोगी अनुसंधान के माध्यम से जैव ईंधन और अन्य ईंधन उत्पादों में परिवर्तित करके कार्वन डाईऑक्साइड के उन्मूसलन हेतु शैवाल (algae) आधारित प्रक्रिया के विकास के लिए प्रयास प्रारंभ किए हैं। कुछ विशिष्ट शैवालों में वजन के आधार पर लिपिड (lipids)/ जैव तेलों के 40% अंश निहित होते हैं। शैवालीय पौधों में अपेक्षाकृत कम भूमि पदचिह्न हो सकते हैं क्योंकि शैवालीय पौधे पारंपरिक जैव तेलीय पौधों की तुलना में 7-30 गुना अधिक भूमि पदचिह्न उत्पन्न करते हैं। खुला तालाब और फोटो algae आधारित दोनों प्रक्रियाओं को विकसित किया जाएगा।
फ्लाई ऐश के जलीय कार्बोनीकरण (aqueous carbonation) द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड का निर्धारण
कार्बन डाईऑक्साइड युक्त गैसीय ईधन वाले पावर प्लांट से अपशिष्ट सामग्री जैसे फ्लाई ऐश की प्रतिक्रिया के माध्यम से कैल्शियम और ऑक्साइड / सिलिकेट को कार्बोनेटों में परिवर्तित करते हुए उनको खनिज में बदला जा सकता है। एनटीपीसी के कुछ स्टेशनों में उत्पन्न होने वाली फ्लाई ऐश में कैल्शियम की मात्रा लगभग 4-4.5%है। कैल्शियम की इस उच्च मात्रा के परिणाम स्वरूप कुछ प्रचालनात्मक समस्याएं जैसे पाइपों में स्केलिंग आदि उत्पन्न होने की संभावनाएं बनी रहती हैं परन्तु खनिजीकरण की प्रतिक्रिया के लिए इनका लाभप्रद ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। प्लांट ईधन गैस के साथ प्रतिक्रिया के लिए इस फ्लाई ऐश के उपयोग हेतु अध्ययन किए जा रहे हैं। कार्बन डाईऑक्साइड के सदुपयोग के अलावा इसके अन्य लाभ जैसे अम्लीय गैसों के साथ अल्काईन (alkaline) ऐश जल का न्यूट्रलाईजेशन, वायु प्रदूषण में कमी, अपेक्षाकृत कम अस्थाई उत्सर्जन, पानी की कमी और ऐश के निपटान के लिए कम भूमि की आवश्यकता आदि भी हैं।