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प्रेस विज्ञप्ति
सीओपी 21 - ''जलवायु परिवर्तन और ताप विद्युत उत्पादन - पारंपरिक प्रणालियों में सुधार'' में भारतीय भागीदारी
03rd दिसम्बर, 2015
3 दिसंबर 2015 को पेरिस में आयोजित सीओपी -21 में भारतीय पेवेलियन में ''जलवायु परिवर्तन और ताप विद्युत उत्पादन - पारंपरिक प्रणालियों में सुधार'' पर परिचर्चा में भाग लेते हुए एनटीपीसी, के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, श्री ए.के.झा ने कहा कि भारत की प्रति व्यक्ति खपत और उत्सर्जन विश्व में सबसे कम है तथापि, मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) जो कि वर्तमान में 135 है और बहुत ही कम है, में सुधार के लिए देश में विद्युत क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वायुमंडल में कार्बन डाय आक्साईड के भारत का हिस्सा महज 2.8 प्रतिशत है लेकिन फिर भी इसे सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम शुरू करना है ताकि 2022 तक 175 गीगावाट क्षमता के नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। तथापि, उन्होंने यह भी कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा 24X7 उपलब्ध नहीं है, इसलिए भारत को कोयला आधारित विद्युत उत्पादन के साथ पर्याप्त संतुलन बनाने की आवश्कता है क्योंकि भारत के पास पर्याप्त गैस और तेल संसाधन नहीं है।
भारत के लिए कोयला कोई विकल्प नहीं बल्कि मजबूरी है, इस बात पर बल देते हुए श्री झा ने कोयला संयंत्रों में कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों द्वारा एडवांस अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल प्रौद्योगिकी पर किए जा रहे शोघ का उल्लेख किया। तथापि, उन्होंने यह भी कहा कि विभिन्न देशों द्वारा किए गए विकास को साझा करने और सहयोग करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि विकास की गति में तेजी लाई जा सके और इसे वाणज्यिक/आईपीआर मामलों से जोड़े बिना जलवायु परिवर्तन के हित में काम किया जा सके।
विद्युत मंत्रालय के संयुक्त सचिव, श्री अनिल कुमार सिंह ने अपने संबोधन में रेखांकित किया कि कुल 280 गीगावाट की कुल संस्थापित क्षमता में से 170 गीगावाट के साथ भारत में कोयला भारतीय विद्युत क्षेत्र का मुख्य आधार है और 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता शामिल करने का मिशन है। श्री सिंह ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद भारत को विद्युत आपूर्ति में संतुलन के लिए विद्युत उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल करना होगा ताकि लोगों को 24X7 वहनीय बिजली आपूर्ति की जा सके।
एनटीपीसी के कार्यकारी निदेशक, श्री ए.के आहुजा ने इस अवसर पर इस विषय से संबंधित प्रस्तुतीकरण दिया और यह कहा कि नए क्षमता परिवर्धन का विकल्प चुनते समय चार कारकों, घरेलू रूप से ईंधन की उपलब्धता, वहनीयता, ग्रिड का स्थायित्व और जलवायु और पर्यावरण पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है ताकि ईष्टतम मिश्रण पर पहुंचा जा सके। उन्होंने कहा कि एनटीपीसी अपने कोयला आधारित स्टेशनों में पारंपरिक सबक्रिटिकल प्रौद्योगिकियों के स्थान पर सुपरक्रिटिकल और अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल प्रौद्योगिकी लगाकर कार्बनडाय ऑक्साईड के उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि निर्माणाधीन 23 गीगावाट में से 90 प्रतिशत से अधिक उन्नत प्रौद्योगिकियों पर आधारित है।
ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशंसि के महानिदेशक, श्री अजय माथुर ने जोर देकर कहा कि भारत के लिए कोयला मुख्य ऊर्जा स्रोत रहेगा और कोयला आधारित सभी क्षमता परिवर्धन जिम्मेदार होंगे। उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा के साथ विद्यत के संतुलन और लागत को कम करने की संक्षेप में चर्चा की।
टेक्नॉलाजी आरएंडडी, आईईए के प्रमुख श्री जां फ्रैंसिस गेन ने जोर देकर कहा कि ऊर्जा क्षेत्र को सभी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं में मुख्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ऊर्जा प्रौद्योगिकी बहुत अहम है इसलिए ऊर्जा अनुसंधान और विकास में वित्तपोषण और वैश्विक सहयोग बुनियादी महत्व रखता है। इन्हीं वजहों से आईईए इस प्रकार के संपर्कों और ऐसी साझेदारी को संभव बनाने पर बल देता है।
सत्र कार्यकारी निदेशक (इंजीनियरिंग), एनटीपीसी लिमिटेड, श्री ए.के. गुप्ता के स्वागत भाषण से आरंभ हुआ।
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